"बंधन जन्मों का" भाग- 21
पिछला भाग:--
रविवार को उसको बुलवाया मैंने बात करने को
पर वो आया नहीं... गुड़िया ने बताया अभी वो कालेज भी नहीं आ रहा......
अब आगे:--
पता नहीं क्यों नहीं आ रहा हो सकता है.... अचानक इन्दौर चला गया हो.......
अब आएगा तभी पता चल पाएगा.....
अगले रविवार को वो अचानक ही घर आ गया...
उसके साथ मम्मी पापा भी थे.... आंटी पहले
तो स्वारी में कुछ बताकर नहीं गया... मुझे एक
दम कुछ सूझा ही नहीं... मैं कैसे बात करुंगा...
सो मैं जाकर मम्मी पापा को ही लेकर आ गया...
ये मिठाई मुँह मीठा करिए.... बेटे की सर्विस लग गयी है शिक्षा विभाग में.....आप चाहें तो शगुन की मिठाई भी समझ सकते हैं....
हम भी आपसे मिलने आते पर हमने सोचा
पहले आयुश से बात कर लें... खैर कोई बात
नहीं आप लोग आए हमें बहुत खुशी है....
छोटा सा रोके का नेंगचार कर लेते हैं....
बात पक्की हो गयी.... गुड़िया की परिक्षाओं
के बाद का मुहूर्त निकलवा लीजिए... हमें दहेज
में कुछ नहीं चाहिए बस एक शर्त है हमारी...
शादी आप इन्दौर में ही आकर करें... सारा
इंतजाम हम कर लेंगे... आपको कोई दिक्कत
नहीं होगी.....
गुड़िया की परिक्षाओं के बाद इन्दौर जाकर
धूमधाम से शादी कर दी....एक दिन का ही कार्यक्रम था... लेडीज संगीत के लिए भी बाहर
से महिलाएं आकर एक घंटे का कार्यक्रम करके
चलीं गयीं.... अच्छे से सब कुछ हो गया....
विमला को बड़ी तसल्ली मिली... दोनों बिटियों
की अच्छे से और अच्छे घर में शादी हो गयी...
बड़ी बिटिया रीता भी सुखी है अपने परिवार में
दो बच्चों के साथ......
दो साल बाद अच्छा घर बार देख कर बेटे प्रवीण
की भी शादी कर दी.....
सोचा चलो अब मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त
हो गयी......
चार पांच साल तो सब ठीक चला... गुड़िया बहुत परेशान रहती कुछ बताती भी नहीं... आखिरकार
जब असहनीय हो गया तब उसने बताया माँ को
माँ बाबू जी तो बहुत अच्छे हैं... आयुश ने अलग
से किराए पर मकान ले लिया... मैंने मना भी करा
छोटे छोटे बच्चे हैं और इस उम्र में माँ बाबू जी से अलग रहना ठीक नहीं है...वो नहीं सुना... कुछ
दिन तो सब ठीक रहा....धीरे-धीरे आयुश का व्यवहार बदलने लगा......
इधर उधर से पता चला किसी लड़की के चक्कर
में पड़ गया है... उसी के साथ अक्सर दिखता है...
पीना पाना भी शुरु कर दिया.... आये दिन घर
आकर लड़ाई झगड़ा करना, मारना पीटना यही
उसकी दिनचर्या हो गयी.... सिगरेट पीने लगा
जहाँ चाहे मुझे सिगरेट से दाग देता... घर ख़र्च को पैसा देना भी बंद कर दिया.....
हद तो तब हो गयी जब वह लड़की को घर में
लेकर आ गया.... माँ बाप की बिल्कुल सुनना
नहीं....वो भी बहुत परेशान हैं.....
विमला और बच्चू ने ये सब सुना सो गुड़िया को घर लेकर आ गये.... कोई उपाय समझ नहीं आया...
अदालत में तलाक की अर्जी लगवा दी....
इधर प्रवीण की शादी को साल भर भी नहीं हुआ
उसकी पत्नी छोड़ कर चली गयी.....
छोटी सी तनख्वाह में उसका गुजारा नहीं होता....
रोज लड़ाई झगड़ा करना.....
आखिर उसने तलाक ले लिया.....
विमला बहुत परेशान हो गयी खुद का दुख...
अब बच्चों का दुख उससे देखा नहीं जा रहा....
है ईश्वर कैसा भाग्य लिखा मेरा... दुखों से उबर
नहीं पा रही- है भगवान क्या करुं मैं.....
क्रमशः--
कहानीकार-रजनी कटारे
जबलपुर ( म.प्र.)